जनवरी माह के अंतिम सप्ताह में भारत सरकार द्वारा पदम पुरस्कार विजेताओं की घोषणा की गई | जिसमें लद्दाख से लेकर तमिलनाडु तक कई प्रेरणादायक भारतीयों को पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया | इसी लिस्ट में एक महत्वपूर्ण नाम सुल्तरिम चोनजोर भी है जिनको मेमे चोनजोर के नाम से जाना जाता है | इनका संबंध लद्दाख की जांस्कर घाटी के सुदूर गांव स्टोंग से है | मेमे चोनजोर पूर्व सरकारी कर्मचारी थे जिन्होंने वर्ष 1965 से वर्ष 2000 तक राज्य हस्तशिल्प विभाग के साथ काम किया | बिहार के ग्रामीण दशरथ मांझी की शानदार कहानी के बारे में सभी जानते हैं जिन्होंने केवल एक हथोड़ा और छेनी का उपयोग करके एक पहाड़ी के माध्यम से रास्ता बनाया | धैर्य, दृढ़ता और समर्पण कि यह कहानी जो अब हर भारतीय के मन मस्तिष्क में गूंजती है | मेमे चोनजोर की कहानी भी इसी से मिलती जुलती है |



मेमे चोनजोर अपने नौकरी के दिनों में लद्दाख की भारत की मुख्य भूमि से दूरी, दुर्गम क्षेत्र, और कनेक्टिविटी की सुविधा ना होने के कारण लद्दाख के स्थानीय निवासियों को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है उससे नाराज थे | यह सत्य किसी से छुपा नहीं है कि किस प्रकार से स्वतंत्रता के बाद से लगातार आने वाली सरकारों द्वारा लद्दाख क्षेत्र को उपेक्षित रखा गया | हालांकि पिछले कुछ वर्षों से लद्दाख क्षेत्र में सड़क संरचना में बेहतर सुधार किया जा रहा है | सीमा सड़क संगठन वर्तमान समय में लगातार 16000 फीट की ऊंचाई तक सड़कों के निर्माण में लगी हुई है | वर्तमान समय में हिमांचल के दारचा से जास्कर के प्रशासनिक केंद्र तक सड़क का निर्माण पूरा कर लिया गया है | पदुम नामक स्थान से सड़क लेह जिले के निमू गांव से होकर जाती है | हालांकि कुछ समय के लिए केवल छोटे वाहन ही यहां से गुजर सकते थे | यह सड़क संभवत बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण टुकड़ा है और केवल नागरिक उद्देश्यों के लिए ही नहीं बल्कि चीनी घुसपैठ के बाद इस सड़क से भारतीय सशस्त्र बलों की आवाजाही भी होती है | 


सुल्तरिम चोनजोर द्वारा तैयार किए गए मार्ग से पहले मनाली-लेह राजमार्ग के माध्यम से ही कारगिल पहुंचा जा सकता था | मौजूदा समय में जिस प्रकार से चीन द्वारा लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ का प्रयास किया जा रहा है | इन परिस्थितियों में जास्कर की सुरक्षा लेह, लाहौल और पूर्वी पंजाब की सुरक्षा से भी महत्वपूर्ण हो जाती है | विभिन्न प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में इस क्षेत्र के स्थानीय लोगों द्वारा सड़क संपर्क के मुद्दों को उठाया गया लेकिन बार-बार आग्रह करने के बावजूद धरातल पर बहुत कम कार्यवाही हुई | लगभग 3 से 4 दशकों के बाद भी जब सड़क संरचना में सुधार नहीं हुआ | तो सुल्तरिम चोनजोर ने 38 किलोमीटर लंबी सड़क के निर्माण के लिए एकल नेतृत्व का प्रयास किया | वर्ष 2014 से वर्ष 2017 तक सुल्ट्रीम चोनजोर ने जम्मू कश्मीर के शिंकुला दर्रे के किनारे बसे इलाके में कारग्यक गाँव से ज़ांस्कर में पहले गाँव तक सड़क का निर्माण पूरा कर दिया | इस कार्य में उन्होंने अपने जीवन की बचत लगाने के साथ अपनी पैतृक संपत्ति को भी भेज दिया और अपनी जेब से लगभग 57 लाख रुपए इस सड़क के निर्माण में खर्च किए | 


मेमे चोनजोर की यह प्रेरणादायक कहानी सिर्फ लद्दाख तक ही सिमट कर रह जाती यदि भारत सरकार द्वारा उनके कार्यों को सराहा नहीं गया होता | आज हम सभी भारतीयों को दशरथ मांझी, मेमे चोनजोर से प्रेरणा लेने की जरूरत है | जिन्होंने सिर्फ आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर असंभव को संभव कर दिखाया | इस तरह की प्रेरणादायक कहानियां यदि स्कूली पाठ्य पुस्तकों में भी जोड़ी जाती हैं | तो निश्चित तौर पर आने वाले वर्षों में हजारों मेमे चोनजोर सामने आते रहेंगे