राष्ट्रीय प्रतीक अर्थात भारत की राष्ट्रीय पहचान का आधार। इसकी विशिष्ट पहचान और विरासत का कारण राष्ट्रीय पहचान है जो भारतीय नागरिकों के दिलों में देशभक्ति और गर्व की भावना को महसूस कराता है।
यहां बहुत सारे राष्ट्रीय प्रतीक हैं जिनके अपने अलग अर्थ हैं जैसे राष्ट्रीय चिन्ह् (चार शेर) शक्ति, हिम्मत, गर्व और विश्वास आदि को दिखाता है, राष्ट्रीय पशु (बाघ) जो मजबूती को दिखाता है, राष्ट्रीय फूल (कमल) जो शुद्धता का प्रतीक है, राष्टीय पेड़ (बनयान) जो अमरत्व को प्रदर्शित करता है, राष्ट्रीय पक्षी (मोर) जो सुन्दरता को दिखाता है, राष्ट्रीय फल (आम) जो देश की उष्णकटिबंधीय जलवायु को बताता है। आप भी जानिए राष्ट्रीय प्रतीकों के बारे में, बड़ा रोचक है उनका इतिहास और उनका अर्थ।
सबसे पहले भारत का राष्ट्रीय चिह्न
भारत का राजचिह्न सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तंभ की अनुकृति है, जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। मूल स्तंभ में शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। इसके नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक सांड तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं, इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा हुआ है।
भारत सरकार ने यह चिन्ह 26 जनवरी, 1950 को अपनाया। इसमें केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नही देता। पट्टी के मध्य में उभरी हुई नक्काशी में चक्र है, जिसके दाईं ओर एक सांड और बाईं ओर एक घोड़ा है। दाएं तथा बाएं छोरों पर अन्य चक्रों के किनारे हैं। आधार का पदम छोड़ दिया गया है। फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- 'सत्य की ही विजय होती है'।
भारत का राष्ट्रीय संकल्प
भारत मेरा देश और सभी भारतवासी मेरे भाई और बहन है।
मैं अपने देश से प्रेम करता हूँ और मैं इसकी समृद्धि और विभिन्न विरासत पर गर्व करता हूँ।
मैं अवश्य हमेशा इसके लिये योग्य मनुष्य बनने का प्रयास करुँगा।
मैं अवश्य अपने माता-पिता और सभी बड़ों का आदर करुँगा, और सभी के साथ विनम्रतापूर्वक व्यवहार करुँगा।
अपने देश और लोगों के लिये, मैं पूरी श्रद्धा से संकल्प लेता हूँ, उनकी भलाई और खुशहाली में ही मेरी खुशी है।
भारतीय गणराज्य द्वारा भारत के राष्ट्रीय संकल्प के रूप में राजभक्ति की कसम को अंगीकृत किया गया था। सामान्यत: यह संकल्प भारतीयों द्वारा सरकारी कार्यक्रमों में और विद्यार्थीयों द्वारा किसी राष्ट्रीय अवसर (स्वतंत्रता और गणतंत्रता दिवस पर) पर स्कूल और कॉलेजों में लिया जाता है। ये स्कूली किताबों के आमुख पृष्ठ पर लिखा होता है।
इसे वास्तव में पिदिमार्री वेंकटा सुब्बाराव (एक लेखक और प्रशासनिक अधिकारी) ने तेलुगु भाषा में 1962 में लिखा था। इसे पहली बार 1963 में विशाखापट्टनम् के एक स्कूल में पढ़ा गया था। बाद में इसे सुविधा के अनुसार कई क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया। बैंगलोर, एम.सी चागला की अध्यक्षता में, 1964 में शिक्षा की केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड की मीटिंग के बाद इसे 26 जनवरी 1965 से ये स्कूलों में पढ़ा जाने लगा।
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