हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लड़कों और लड़कियों की शादी के लिए समान न्यूनतम उम्र से संबंधित दायर की गई है | उसी के तुरंत बाद से देश के प्रबुद्ध लोगों के बीच इस पर चर्चा प्रारंभ हो गई है | पूर्व में केंद्र सरकार ने इस पर एक टास्क फोर्स का भी गठन किया था | जिसने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है  और सरकार इस पर विचार भी कर रही है | भारत में लड़कों और लड़कियों की शादी की उम्र में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 और उसके बाद शारदा एक्ट के माध्यम से अलग-अलग समय में बदलाव किए गए | यह उम्र अलग-अलग क्यों निर्धारित की गई थी ? इस पर कुछ वैज्ञानिक कारण और कुछ सामाजिक कारण बताए जाते हैं | सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका में सभी धर्मों के लिए एक समान और लड़के एवं लड़की की उम्र को भी एक समान रखने की अपील की गई है | भारत में कानूनी रूप से शादी के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की उम्र न्यूनतम 18 वर्ष की मान्यता है |

उम्र में यह अंतर क्यों निर्धारित किया गया था यह बताना मुश्किल है ? प्रबुद्ध लोगों की माने तो पूर्व में भारत में बाल विवाह प्रथा प्रचलित थी | ऐसे में बाल विवाह को समाप्त करने के लिए बालिकाओं की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई थी | लड़कियों की उम्र 21 वर्ष ना किए जाने के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि लड़कियों की मां बनने के लिए शरीर की बनावट, परिपक्वता, मजबूती बेहद जरूरी होती है और यह विशेष रूप से भारत में 18 वर्ष की उम्र में लड़कियों में आ जाती है | कुछ लोगों का यह भी मानना था कि भारत में जहां पितृसत्तात्मक समाज का बोलबाला था | ऐसे में लड़कियों को पराया धन समझा जाता था और यह आज भी देखने को मिलता है | जिसके चलते लोग बालिकाओं पर बालकों की शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य आदि पर ज्यादा तवज्जो देते थे | लड़कियों को परिवार पर एक बोझ के समान समझा जाता था | 70 से 90 के दशक में दहेज प्रथा भी भारत में प्रचलित थी | ऐसे में दहेज प्रथा भी न्यूनतम उम्र रखने का एक कारण हो सकता है | यह आज ही विशेषकर भारतीय ग्रामीण समाज में देखने को मिलता है | जिसके चलते बालिकाओं की उम्र न्यूनतम 18 वर्ष निर्धारित की गई थी |

मौजूदा समय की बात करें तो भारत में सभी धर्मों के अपने-अपने विवाह से संबंधित कानून हैं | इनमें से अधिकांश में लड़कों और लड़कियों की उम्र 21 और 18 वर्ष ही निर्धारित की गई है | आज के समय में जब महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर चल रही हैं | विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों से आगे निकल रही हैं | समाज सेवा और राजनीति से लेकर सैन्य बलों में भी अब महिलाओं की उपस्थिति बढ़ रही है | ऐसे में यह भेदभाव उचित प्रतीत नहीं होता है | संवैधानिक दृष्टि से देखें तो यह व्यवस्था अनुच्छेद 14 और 15 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है | संविधान ने सभी को समानता के अधिकार और स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का अधिकार दिया है | ऐसे में आवश्यक है कि अब लड़कों और लड़कियों की उम्र को समान किया जाए | वहीं दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार महिलाओं के परिपक्व होने की उम्र 20 वर्ष बताई गई है | मौजूदा परिस्थितियों और समाज में हो रहे बदलाव को देखते हुए केंद्र सरकार को लड़कों और लड़कियों की उम्र को समान करना चाहिए | दोनों की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष करनी है या 21 वर्ष इसका निर्धारण सामाजिक, मानसिक, धार्मिक, हेल्थ, शैक्षणिक, आर्थिक सभी पक्षों को ध्यान में रखकर करना होगा | शादी की न्यूनतम उम्र का निर्धारण इस प्रकार से होना चाहिए ताकि लड़कियां भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें और उन पर समय पूर्व शादी कि तलवार नहीं लटकनी चाहिए |

@Kulindar Singh Yadav